364 प्रश्नों के साथ तराना विधायक प्रदेश में 5 वें नंबर पर, पारस जैन ने उठाए 9 सवाल
विधानसभा में विधायकों की परफॉर्मेंस
अक्षरविश्व न्यूज.उज्जैन।विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। यह चुनावी साल है, ऐसे में विधायकों के लिए यह सत्र कई मायनों में अहम है। विधायक सदन में सवाल उठाकर न केवल जनता की आवाज उठाते है, बल्कि सरकार की कार्य प्रणाली पर भी नजर रखते हैं।
जनता के सवालों को विधानसभा में पूछने के मामले में मंदसौर से तीन बार के भाजपा विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया सबसे आगे हैं। उज्जैन जिले की बात करें तो भाजपा के पारस जैन का नाम सबसे कम सवाल वाले विधायकों में है। कांग्रेस के महेश परमार सबसे अधिक प्रश्न पूछने वालों सूची में शामिल है।
15वीं विधानसभा के अब तक के कार्यकाल में सवालों को लेकर अधिक सक्रिय और कम सजग 10-10 विधायकों की सूची में उज्जैन के विधायकों के नाम भी शामिल है। विधानसभा की कार्यवाही का रिकॉर्ड बताता है कि 9 सवाल उठाकर विधायक पारस जैन कम सवाल पूछने वालो में 6 स्थान पर है।
कांग्रेस के महेश परमार ने 364 सवाल उठाए हैं और अधिक सवाल वाले विधायक की लिस्ट में 4 स्थान पर है। खास बात यह कि सवालों को लेकर अधिक सक्रिय और कम सक्रिय टॉप-10 विधायकों में कांग्रेस और भाजपा के विधायको की संख्या लगभग आधी-आधी है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ अनुभवी विधायकों की परफॉर्में स सबसे अच्छी रही।
पहली बार के विधायकों ने भी अपने प्रदर्शन की छाप विधानसभा में छोड़ी है। भाजपा विधायक यशपाल सिंह सिसैदिया ने 15वीं विधानसभा के अब तक के कार्यकाल में 405 सवाल पूछे हैं। उन्हीं की वजह से देशभर में पोस्टमॉर्टम से जुड़ा नियम बदल गया।
एक दिन में 7 दिन का भत्ता….. विधायक को विधानसभा सत्र शुरू होने से तीन दिन पहले से अतिरिक्त भत्ता मिलना शुरू हो जाता है। सत्र समाप्त होने के तीन दिन बाद तक यह भत्ता मिलता है। इस हिसाब से यदि किसी सत्र में विधानसभा की कार्यवाही सिर्फ एक दिन चलती है तो भी विधायक को 7 दिन का भत्ता दिया जाता है।
प्रश्न की जानकारी एकत्रित की जा रही है सबसे
विधानसभा में विधायकों की परफॉर्मेंस कम रहने को लेकर विधानसभा के जानकारों के अनुसार इसका सबसे बड़ा कारण सत्र की बैठकों में कमी आना है। जो विधायक सवाल पूछते भी हैं, तो ज्यादातर जवाब आते नहीं है। जवाब में बताया जाता है कि जानकारी एकत्रित की जा रही है।
यही वजह है कि विधायकों का सवाल पूछने के प्रति रुझान धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि विधायक सदन में मुद्दे नहीं उठाते। कई विधायकों की सदन में अच्छी परफार्मेंस देखने को मिली है। चूंकि इनमें से कई अनुभवी विधायक हैं। इसलिए अपनी बात सदन में रख लेते हैं, लेकिन बैठके कम होने से नए विधायकों को मौका नहीं मिल पाता है।
50 साल में वेतन 550 प्रतिशत तक बढ़ चुका
प्रदेश में 1972 से विधायकों को वेतन-भत्ते दिए जा रहे हैं। तब उन्हें 200 रुपए मासिक वेतन मिलता था। अभी 1.10 लाख रुपए है। बीते 50 साल में इनका वेतन 550 प्रतिशत बढ़ चुका है। पांच साल में विधायकों के वेतन-भत्तों पर कुल 149 करोड़ रुपए खर्च किए। मप्र में आखिरी बार विधायकों का वेतन साल 2016 में बढ़ा था।
वेतन-भत्ते और बढ़ाने की तैयारी
मध्यप्रदेश में 7 साल बाद विधायकों के वेतन-भत्ते बढऩे का प्रस्ताव है। अभी उन्हें हर महीने 1 लाख 10 हजार रुपए वेतन मिलता है, जो 40 हजार रुपए बढऩे वाला है। इससे वेतन 1.50 लाख रुपए महीना हो जाएगा। जबकि सीएम को 2 लाख तो कैबिनेट मंत्रियों को 1.70 लाख रुपए मिलते हैं। वेतन-भत्ते बढ़ाने के लिए सरकार ने अन्य राज्यों से जानकारी बुलाई है। इसके बाद वेतन-भत्तों व पेंशन पुनरीक्षण के लिए गठित समिति इस पर फैसला करेगी। समिति में वित्त मंत्री और संसदीय कार्यमंत्री सदस्य हैं।
एक विधायक पर कितना खर्च
प्रदेश में आम आदमी की सालाना औसत आमदनी 79 हजार 907 रुपए है, जबकि उनके वोट से जीतकर विधानसभा में पहुंचने वाले विधायक को वेतन-भत्तों के रूप में करीब 13 लाख 20 हजार रुपए सालाना मिलते हैं। यानी आम आदमी की इनकम से 18 गुना ज्यादा। बता दें कि एक विधायक को मानदेय के रूप में 1 लाख 10 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं।


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